भगवान शिव का वर्णन | Bhgwan shiv ka varnan

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भगवान शिव जी हिंदू धर्म के मुख्य देवताओं में से एक हैं और त्रिमूर्ति के तीसरे भाग, ब्रह्मा (सृष्टि), विष्णु (पालना) और शिव (संहार) में से एक हैं। वे सात लोकों के स्वामी और सबके पिता कहलाते हैं। भगवान शिव के कई नाम हैं जैसे - महादेव, शिव, शंभू, आशुतोष,नीलकंठ, शंकर, रुद्र, महेश, आदि।  

                                       

हर हर महादेव 🚩

भगवान शिव के चित्रण में उन्हें त्रिनेत्र, जिसमें उन्हें तीन आंखें होती हैं, देखा जाता है। उनके वस्त्र और आभूषण अट्टहास का वर्णन करते हैं। वे भूखंड के त्रिशूल और डमरू वाद्ययंत्र के साथ दिखाई देते हैं, जिससे उन्हें त्रिशूलधारी भी कहते हैं।

भगवान शिव के सिर पर सर्प वासुकि बिलकते हैं। उनके गले में रूद्राक्ष की माला होती है और उनके हाथ में डमरू होता है। वे गंगा जी को अपने जटाओं में संभाले हुए होते हैं और उनके बाल सिर के ऊपर जटा हैं। उनकी जटाओं में अशेष अर्धचंद्रकार होता है।

भगवान शिव के लिए नीलकंठ (नीले कंठ) नाम प्रसिद्ध है, क्योंकि उन्होंने समुद्र मंथन के समय विष पी लिया था, जिससे उनके कंठ का रंग नीला हो गया था।

भगवान शिव के चरणों में भक्तों द्वारा उनकी पूजा अर्चना के लिए काले बाजरे (उड़द का दाल) के लड्डू और बेल पत्र अर्पित किए जाते हैं। भगवान शिव की पूजा का विशेष महत्व है और उन्हें सभी शिव मंदिरों में पूजा जाता है।

भगवान शिव जी धर्म, वैराग्य, और न्याय के देवता माने जाते हैं। उनका तांडव नृत्य की मधुर सृजनशीलता और उनके प्रेमी भक्त पार्वती (उमा) के संग दिखाए जाते हैं। उनके ध्यान में लगने से मनुष्य की आत्मा शुद्ध हो जाती है और उसे मोक्ष की प्राप्ति होती है। भगवान शिव जी की पूजा और अर्चना से मनुष्य की बुराईयों का नाश होता है और उसे शुभ फल मिलता है।

 

भगवान शिव जी का स्वरूप 

हिंदू पौराणिक कथाओं और शास्त्रों के अनुसार, भगवान शिव की उत्पत्ति का एक रूप उनके आध्यात्मिक स्वरूप से जुड़ा हुआ है। उनका आध्यात्मिक स्वरूप प्राकृतिक शक्ति और पुरुष के अद्भुत संगम के कारण उत्पन्न हुआ था।

कथाओं के अनुसार, एक समय के दौरान देवराज ब्रह्मा की अभिमति से एक बड़ी संख्या में आत्मा रूपी जीवों का उत्पन्न होना हुआ। जीवों का यह समुदाय बहुत दुर्बल और अशक्त था, और उन्हें प्रकृति की अपार शक्ति विराट स्वरूप द्वारा रक्षा की आवश्यकता थी। इसके लिए ब्रह्मा जी ने विष्णु और शिव जी से विनती की।

ब्रह्मा जी की प्रार्थना को सुनकर, भगवान विष्णु ने अपनी माया से एक अद्भुत नारी स्वरूप बनाया, जिसे विश्वविद्या कहा गया। विश्वविद्या ने एक अत्यंत तपस्विनी और देवों को प्रसन्न करने वाली विशेष शक्ति का अभ्यास किया।

एक दिन, विश्वविद्या के तपस्वी अभ्यास के दौरान उन्हें एक सुन्दर बालक का रूप धारण कर लिया। उस बालक का नाम नीलकंठ रखा गया और विश्वविद्या ने उसके साथ उसे जल्दबाजी में अपने तपस्विनी गुहा में छुपा दिया।

नीलकंठ गुहा में छिपे रहते हुए तपस्विनी गुहा के आसपास चंद्रमा, सूर्य, अग्नि, धरती, वायु, जल, और आकाश ने अपने अद्भुत शक्तियों का संगम किया। इस तपस्या के फलस्वरूप उनका शरीर पंचतत्वों से समृद्ध हो गया।

धरती ने उन्हें स्वयंभू और अर्धनारीश्वर रूप में दिखाया, जिससे उनकी अद्भुतता का अंदाज़ा हुआ। इन्ही विशेष शक्तियों के कारण ही उन्हें शिव भगवान का नाम मिला, क्योंकि "शिव" शुभ होने के साथ-साथ मार्गदर्शक भी होता है।

इस तरह, भगवान शिव की उत्पत्ति एक दिव्य प्रक्रिया थी, जिसमें विश्वविद्या और पंचतत्वों के संगम के फलस्वरूप उन्हें भगवान शिव बनाया गया।

शिव जी का विवाह

भगवान शिव का विवाह प्रसिद्ध हिंदू पौराणिक कथाओं में प्रस्तुत नहीं किया गया है, लेकिन शिव पुराण और विष्णु पुराण में भगवान शिव के विवाह के बारे में कुछ कथाएं मिलती हैं। ये कथाएं विभिन्न पौराणिक काव्य और लोककथाओं में भी मिलती हैं, लेकिन इनका असली स्रोत पुराण है।

भगवान शिव का विवाह प्रमुखतः देवी सती और देवी पार्वती के साथ सम्बंधित है।

1.    देवी सती के साथ विवाह: भगवान शिव का पहला विवाह देवी सती से हुआ था। देवी सती ब्रह्मा जी की पुत्री थी और भगवान शिव की तपस्या में मोहित होकर उनसे प्रेम किया था। उनका विवाह बड़े विशेषता के साथ सम्पन्न हुआ था। यह विवाह सती जी की महादेव (शिव) के रूप में जन्मान्तर लेने का आदिश्वरूप था।

2.    देवी पार्वती के साथ विवाह: भगवान शिव का दूसरा विवाह देवी पार्वती के साथ हुआ था। देवी पार्वती में माता पार्वती और हिमवान राजा की पुत्री थी। उन्होंने भगवान शिव की भक्ति और तपस्या करके उन्हें प्राप्त किया। देवी पार्वती का विवाह भगवान शिव से एक अद्भुत समय पर हुआ और इसे महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है।

दोनों विवाह भगवान शिव के भक्तों के बीच अपार प्रेम और समर्पण के प्रतीक हैं। शिव पुराण और विष्णु पुराण के अलावा, भगवान शिव के विवाह से सम्बंधित विभिन्न कथाएं और लोककथाएं हिंदू धर्म के अन्य पुराणों और ग्रंथों में भी मिलती हैं।

शिव जी के महान भक्त

भगवान शिव के भक्तों में कई महान व्यक्तियों ने अपनी अद्भुत भक्ति और समर्पण के साथ प्रसिद्धी प्राप्त की है। ये महान भक्त हिंदू धर्म के इतिहास में अद्भुत पौराणिक कथाओं, लोककथाओं और वेदांतिक ग्रंथों में उल्लिखित हैं। कुछ महान भक्तों के नाम निम्नलिखित हैं:

1.    प्रहलाद: प्रहलाद भगवान विष्णु के भक्त थे, लेकिन उनकी भक्ति और श्रद्धा भगवान शिव के प्रति भी थी। उनके जीवन की कई कथाएं प्रसिद्ध हैं, जिनमें शिव की कृपा और आशीर्वाद का भी उल्लेख है।

2.    मार्कण्डेय: मार्कण्डेय रामभक्त और शिवभक्त दोनों थे। उनके जीवन की कई कथाएं प्रसिद्ध हैं, जो उनके भक्ति और तपस्या की महिमा का वर्णन करती हैं।

3.    नारद मुनि: नारद मुनि भगवान विष्णु और भगवान शिव के द्वारा प्रसिद्ध भक्त थे। उनके कई लोकप्रिय कथाएं हैं, जो उनके भक्ति और प्रेम की उत्कृष्टता दिखाती हैं।

4.   मीराबाई: मीराबाई रणी रत्नसिंह की रानी थी और भगवान कृष्ण के दिवाने भक्त थीं। उनके भक्ति और समर्पण के गीत और भजन आज भी लोगों को अपनी ओर आकर्षित करते हैं।

5.  आदि शंकराचार्य: आदि शंकराचार्य, हिंदू धर्म के प्रमुख आचार्यों में से एक थे, जिनकी भक्ति और वेदांती ज्ञान ने लोगों को प्रभावित किया। उन्होंने शिव के गुणों का गान किया और उनके भक्ति भाव को समर्थन किया।

6. रावण: राक्षस राजा रावण भगवान शिव के विशेष भक्त थे। उन्होंने अपने भक्ति और तपस्या से शिव की कृपा प्राप्त की थी। रावण के विशेषतः शिव तंत्र के ज्ञान में माहिर थे और उन्होंने कई शिवलिंगों की स्थापना की थी।

7.   अन्दाल: आंध्र प्रदेश की संत कवि अन्दाल भगवान शिव के महान भक्तों में से एक हैं। उन्होंने भगवान शिव की भक्ति और उपासना करते हुए उन्हें प्रसन्न किया और उनके प्रेम की प्रतीक्षा में ही उनका विवाह हुआ था।

हिंदू धर्म में अनेक महान भक्तों ने भगवान शिव के प्रति अपनी भक्ति और समर्पण का प्रदर्शन किया है। उनकी भक्ति के प्रति लोगों की श्रद्धा और प्रेम आज भी अध्यात्मिक सफलता का एक महत्वपूर्ण स्रोत है।

 

 शिव जी के अन्य नाम

भगवान शिव के अनेक नाम हैं, जो उनके विभिन्न गुणों, विशेषताओं और कार्यों को दर्शाते हैं। निम्नलिखित कुछ प्रसिद्ध भगवान शिव के अन्य नाम हैं:

1.  महादेव: शिव को महादेव कहा जाता है, जिसका अर्थ होता है "महान देवता"

2.  नीलकंठ: शिव को नीलकंठ भी कहा जाता है, क्योंकि उनके गले का रंग नीला हो गया था जब उन्होंने समुद्र मंथन के समय विष पी लिया था।

3. भोलेनाथ: भोलेनाथ का अर्थ होता है "भोले हृदय वाले ईश्वर" शिव को भोलेनाथ कहने से उनकी सरलता और प्रसन्नता की प्रशंसा की जाती है।

4.    रुद्र: भगवान शिव को रुद्र के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "क्रोधी" या "आवेगशील"

5.   महेश: शिव को महेश के नाम से भी पुकारा जाता है, जिसका अर्थ होता है "महान ईश्वर"

6. शंकर: शिव को शंकर के नाम से भी पुकारा जाता है, जिसका अर्थ होता है "मंगलकारक और सुखदायक"

7.  शम्भु: भगवान शिव को शम्भु के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "आनंदी" या "खुश"

8. पशुपति: शिव को पशुपति के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "सभी पशुओं के स्वामी"

9.अर्धनारीश्वर: भगवान शिव को अर्धनारीश्वर के रूप में भी पुकारा जाता है, जिसका अर्थ होता है  "पुरुष और स्त्री का संगम"

10.  नटराज: भगवान शिव को नटराज के नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ होता है "नृत्य का राजा"

11. आशुतोष: भगवान शिव को इस नाम से भी जाना जाता है, जिसका अर्थ "आसानी से प्रसन्न होने वाला" होता है।

12.  शुलपाणि: इस नाम का अर्थ "त्रिशूल धारी" होता है, जिसे उनके हाथों में त्रिशूल धारण करने के कारण प्राप्त किया गया है। 

ये कुछ भगवान शिव के प्रसिद्ध नाम हैं, लेकिन इसके अलावा भी उनके और अनेक नाम हैं जो हिंदू धर्म के भक्तों द्वारा प्रयोग किए जाते हैं।

Note - यह आर्टिकल विभिन्न आर्टिकल के अध्ययन के उपरान्त लिखा गया है

किसी भी प्रकार की गलत तथ्य पाए जाने पर आप मुझे कॉमेंट करें। धन्यवाद 

 

 

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