भारत में जातियाँ बहुत ही जटिल और प्राचीन सामाजिक व्यवस्था का हिस्सा रही है जो आधुनिक भारत में गृह युध्य की तरफ अग्रसर है इसके बहुत से कारण है जिसमें जातियों के कुछ संगठन, जातिगत मतभेद, वोट की राजनीती और जातिगत आरक्षण इत्यादी से देश में व्यापत कुरीतियां ख़त्म होने का नाम ही नहीं ले रही है आइए इसे विस्तार से समझने का प्रयास करते हैं ?
सर्वप्रथम हम यह जानते है कि हमारे समाज को चार वर्णों में बांटा गया था वर्ण व्यवस्था भारतीय समाज की एक पारंपरिक सामाजिक संरचना है, जो हजारों वर्षों से चली आ रही है। यह व्यवस्था मुख्य रूप से चार प्रमुख वर्गों में विभाजित है:
1. ब्राह्मण – ज्ञानी और पुरोहित वर्ग, इनका काम वेदों का अध्ययन, शिक्षा देना, यज्ञ करना और धार्मिक कार्यों का संचालन था।
2. क्षत्रिय – योद्धा और शासक वर्ग, इनका काम समाज की रक्षा करना, शासन करना और युद्ध करना था।
3. वैश्य – व्यापारी और कृषक वर्ग, ये लोग व्यापार, खेती और पशुपालन का कार्य करते थे।
4. शूद्र – सेवक वर्ग, इनका काम अन्य तीनों वर्णों की सेवा करना माना जाता था।
समाज में वर्ण व्यवस्था की स्थिति:वर्ण व्यवस्था शुरू में गुण, कर्म और स्वभाव के आधार पर बनाई गई थी, यानी व्यक्ति के कार्य और योग्यता के अनुसार उसका वर्ग निर्धारित होता था। लेकिन धीरे-धीरे यह व्यवस्था जन्म आधारित हो गई और जाति व्यवस्था में बदल गई, जिससे सामाजिक असमानता, भेदभाव और छुआछूत जैसी बुराइयाँ उत्पन्न हुईं।
वर्तमान में वर्ण व्यवस्था की स्थिति:
आज भारतीय संविधान में समानता का अधिकार, अवसर की समानता और जातिगत भेदभाव पर प्रतिबंध है। सरकार ने आरक्षण व्यवस्था, दलितों और पिछड़े वर्गों के लिए योजनाएँ लागू की हैं ताकि ऐतिहासिक अन्याय की भरपाई की जा सके और सरकार की ये नीति सत्य साबित हो रही है
जबकि आज का समाज अब जातिवाद के जाल में फंस कर जातीय संघर्ष का रूप लेते जा रहे है इसका सबसे बड़ा कारण जातिगत आरक्षण है जिससे लोगों के दिमाग से जातिगत भेदभाव खत्म ही नहीं हो रहा सरकार को आर्थिक रूप से आरक्षण देना चाहिए जिससे समाज में जातिगत भेदभाव खत्म होगा और लोगों में समानता आयेगी
संवैधानिक कानून:
भारतीय संविधान ने जातीय भेदभाव को गैरकानूनी घोषित किया है साथ ही साथ अनुसूचित जातियां, अनुसूचित जनजातियां, और अन्य पिछड़े वर्ग को शिक्षा और नौकरी में आरक्षण दिया गया है, जिससे सामान्य जाति के गरीब वर्ग के लोगों के साथ भेदभाव और असमानता कायम रखते हुए समाज में समानता की बात कही गई है जो कि इस तरह के नियम से संभव नही है।
महत्वपूर्ण निष्कर्ष:
उपरोक्त जातीय भेदभाव से यह ज्ञात होता है कि आने वाले एक-दो दशक के बाद समाज में जातीय संघर्ष देखने को मिल सकता है। अतः हम सभी को ये सुनिश्चित करना होगा कि हमारे देश में जातीय आरक्षण न लागू करके आर्थिक आरक्षण लागू करना चाहिए जिससे समाज को जातीय विचारों से मुक्ति मिलेगी और समानता आयेगी।
मैं निरंतर चिंतन मनन और वर्तमान में समाज में चल रहे जातीय भेद से आपको अवगत कराता रहूंगा.. आप सभी को धन्यवाद🙏