माँ दुर्गा के 9 रूपों का वर्णन (Maa durga ke Nav rupon ka varnan)
ॐ सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके।
शरण्ये त्रयम्बके गौरी नारायणी नमोस्तुते।।
रोग - शोक का विनाश करती है माँ शैलपुत्री।🙏
अडिगता का संदेश देती माँ ब्रह्मचारिणी🙏
नवरात्र के दूसरे दिन भक्त ध्यानमग्न होकर माँ ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। देवी ब्रह्मचारिणी तप की शक्ति का प्रतीक है। माँ का यह स्वरूप भक्तों को अनंत फल देने वाला कहा गया है। सर्वव्यापी ब्रह्मांडीय चेतना का स्वरूप, मां ब्रह्मचारिणी के रूप में भक्तों को आशीष देता है। ब्रह्म का अर्थ वह परम चेतना है, जिसका न तो कोई आदि है और न कोई अंत, जिसके पार कुछ भी नहीं है। नवरात्र के दूसरे दिन भक्त ध्यान मग्न होकर परमसत्ता की दिव्य अनुभूति मां ब्रह्मचारिणी की पूजा करते हैं। मां के इस स्वरूप की आराधना करने वालों की शक्तियां असीमित, अनंत हो जाती हैं। फलस्वरूप उसके समस्त दुख दूर होते हैं और वह सुखों को प्राप्त करता है। सत, चित्त, आनंदमय ब्रह्म की प्राप्ति कराना ही ब्रह्मचारिणी का स्वभाव है। चंद्रमा के समान निर्मल, कांतिमय और भव्य रूप वाली, दो भुजाओं वाली ब्रह्मचारिणी कौमारी शक्ति का स्थान योगियों ने 'स्वाधिष्ठान चक्र' में बताया है। इनके एक हाथ में कमंडल तथा दूसरे में चंदन की माला रहती है। अपने भक्तों को मां ब्रह्मचारिणी प्रत्येक काम में सफलता देती हैं। वे सन्मार्ग से कभी नहीं हटते और जीवन के कठिन संघर्षों में भी अपने कर्तव्य का पालन, बिना विचलित हुए करते रहते हैं। इनका वाहन शिखर अर्थात पर्वत की चोटी को बताया गया है। मान्यता है कि देवी दुर्गा का यह रूप साधकों को अमोघ फल प्रदान करता है। साधक को यश, सिद्धि और सर्वत्र विजय की प्राप्ति होती है। नवदुर्गाओं में द्वितीय देवी ब्रह्मचारिणी का स्वरूप पूर्ण-ज्योर्तिमय है। वे गहन तप में लीन हैं। देवी का मुख दिव्य तेज से भरा है और भंगिमा शांत है। मुखमंडल पर विकट तपस्या के कारण अद्भुत तेज और अद्वितीय कांति का अनूठा संगम है, जिससे तीनों लोक प्रकाशमान हो रहे हैं। ऐसी मान्यता है कि जो भी भक्त मां ब्रह्मचारिणी का व्रत करता है, वह कभी भी अपने जीवन में नहीं भटकता। अपने मार्ग पर स्थिर रहता है और उसे जीवन में सफलता प्राप्त होती है।
साहस और शक्ति की देवी माँ चंद्रघंटा🙏
प्राणशक्ति देवी माँ कूष्माण्डा 🙏
मोक्ष प्रदाता माँ स्कंदमाता🙏
तेज और प्रताप बढा़ती माँ कात्यायनी🙏
माँ कात्यायनी दिव्यता के अति गुप्त रहस्यों की प्रतीक हैं। व्यक्ति का भाग्य उसके आंतरिक अदृश्य जगत से संचालित होता है। वह जगत जो अदृश्य है, हमारी इंद्रिया भी उसका अनुभव नहीं कर सकतीं और जो हमारी कल्पना से परे है। वही जगत मां कात्यायनी के प्रताप से संबंधित है। नवरात्र के छठे दिन मां के कात्यायनी रूप का ध्यान, पूजन करने से भक्त के आंतरिक सूक्ष्म जगत में चल रही नकारात्मकता का नाश होता है और सकारात्मकता का विकास होता है। सुनहरे और चमकीले वर्ण वाली, चार भुजाओं वाली और रत्नाभूषणों से अलंकृत कात्यायनी देवी खूंखार और झपट पड़ने वाली मुद्रा में रहने वाले सिंह पर सवार रहती हैं। इनका आभामंडल विभिन्न देवों के तेज अंशों से मिश्रित इंद्रधनुषी छटा देता है। प्राणियों में इनका वास 'आज्ञा चक्र' में होता है और योग साधक इस दिन अपना ध्यान आज्ञा चक्र में ही लगाते हैं। माता कात्यायनी की एक भुजा अभय देने वाली मुद्रा में तथा नीचे वाली भुजा वर देने वाली मुद्रा में रहती है। बाईं ओर की ऊपर वाली भुजा में वे चंद्रहास खड्ग (तलवार) धारण करती हैं, जबकि नीचे वाली भुजा में कमल का फूल रहता है। एकाग्रचित और पूर्ण समर्पित भाव से कात्यायनी देवी की उपासना करने वाला भक्त बड़ी सहजता से धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष, इन चारों पुरुषार्थों की प्राप्ति कर लेता है। सच्चे साधक को मां कात्यायनी दर्शन देकर कृतार्थ करती हैं। वह इस लोक में रहकर भी अलौकिक तेज और प्रभाव को प्राप्त कर लेता है। मां कात्यायनी की सच्चे मन से पूजा करने वाले जातक के रोग, शोक, संताप, भय के साथ-साथ जन्म-जन्मांतर के पाप नष्ट हो जाते हैं। इनकी निरंतर उपासना में रहने वाला जातक परम पद प्राप्त करता है। मां कात्यायनी की उपासना से तेज बढ़ता है और भक्त की ख्याति भी दूर-दूर तक फैल जाती है। मां अपने भक्तों को निराश नहीं करतीं।
ग्रह-बाधा दूर करती माँ कालरात्रि🙏
नवरात्र के सप्तम दिन मां कालरात्रि की उपासना से प्रतिकूल ग्रहों द्वारा उत्पन्न की जाने वाली बाधाएं समाप्त होती हैं और जातक अग्नि, जल, जंतु, शत्रु आदि के भय से मुक्त हो जाता है। मां कालरात्रि का स्वरूप भयानक होने के बावजूद भी वह शुभ फल देने वाली देवी हैं। मां कालरात्रि नकारात्मक, तामसी और राक्षसी प्रवृतियों का विनाश कर भक्तों को दानव, दैत्य, भूत-प्रेत आदि से अभय प्रदान करती हैं। मां का यह रूप भक्तों को ज्ञान और वैराग्य प्रदान करता है। घने अंधेरे की तरह एकदम गहरे काले रंग वाली, सिर के बाल बिखरे रखने वाली माता के तीन नेत्र हैं तथा इनके श्वास से अग्नि निकलती है। कालरात्रि, मां दुर्गा का सातवां विग्रह स्वरूप है। इनके तीनों नेत्र ब्रह्मांड के गोले की तरह गोल हैं। इनके गले में विद्युत जैसी छटा देने वाली सफेद माला सुशोभित रहती है। इनके चार हाथ हैं। मां कालरात्रि का स्वरूप भयानक है, लेकिन वे भक्तों को शुभ फल ही देती हैं। इनका वाहन गधा है। वे अपने भक्तों की रक्षा के लिए हथियार भी रखती हैं। योगी साधकों द्वारा कालरात्रि का स्मरण 'सहस्त्रार' चक्र में ध्यान केंद्रित करके किया जाता है। माता उनके लिए ब्रह्मांड की समस्त सिद्धियों की प्राप्ति के लिए राह खोल देती हैं। मां कालरात्रि के पूजन से साधक के समस्त पाप धुल जाते हैं और उसे अक्षय पुण्य की प्राप्ति होती है। कालरात्रि मां के चार हाथों में से दो हाथों में शस्त्र रहते हैं। एक हाथ अभय मुद्रा में तथा एक वर मुद्रा में रहता है। मां का ऊपरी तन लाल रक्तिम वस्त्र से तथा नीचे का आधा भाग बाघ के चमड़े से ढका रहता है। मां की भक्ति से दुष्टों का नाश होता है और ग्रह-बाधाएं दूर हो जाती हैं। ।
सुख-संपन्नता प्रदाता माँ महागौरी🙏
शवरात्र के आठवें दिन मां महागौरी की उपासना से भक्त के जन्म-जन्मांतर के पाप धुल जाते हैं और मार्ग से भटका हुआ जातक भी सन्मार्ग पर आ जाता है। मां भगवती का यह शक्ति रूप भक्तों को तुरंत और अमोघ फल देता है। भविष्य में पाप-संताप, निर्धनता, दीनता और दुख उसके पास नहीं फटकते। इनकी कृपा से साधक सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है, उसे अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। माता महागौरी का अति सौन्दर्यवान, शांत, करूणामयी स्वरूप, भक्त की समस्त मनोकामना पूर्ण करता है, ताकि वह अपने जीवनपथ पर आगे बढ़ सके। कंद, फूल, चंद्र अथवा श्वेत शंख जैसे निर्मल गौर वर्ण वाली महागौरी के समस्त वस्त्राभूषण और यहां तक कि इनका वाहन भी हिम के समान सफेद रंग वाला बैल माना गया है। इनकी चार भुजाएं हैं। इनमें ऊपर के दाहिने हाथ में अभय मुद्रा और नीचे वाले दाहिने हाथ में त्रिशूल है। ऊपर वाले बाएं हाथ में डमरू और नीचे वाला बायां हाथ वर मुद्रा में रहती है। माता महागौरी मनुष्य की प्रवृत्ति सत् की ओर प्रेरित करके अस्त्र का विनाश करती हैं। माता महागौरी की उपासना से भक्त को अलौकिक सिद्धियों की प्राप्ति हो जाती है। इनकी शक्ति अमोघ और सद्यः फलदायिनी है। इनकी उपासना से भक्तों के सभी कल्मष धुल जाते हैं, पूर्व संचित पाप भी नष्ट हो जाते हैं। वह सभी प्रकार से पवित्र और अक्षय पुण्यों का अधिकारी हो जाता है। महागौरी को शिवा भी कहा जाता है। इनके एक हाथ में शक्ति का प्रतीक त्रिशूल है, तो दूसरे हाथ में भगवान शिव का प्रतीक डमरू है। तीसरा हाथ वरमुद्रा में है और चौथा हाथ एक गृहस्थ महिला की शक्ति को दर्शाता है।
सिद्धियाँ प्रदान करने वाली माँ सिद्धिदात्री 🙏
की सभी सिद्धियां प्रदान करती हैं। देवी भागवत पुराण के अनुसार, भगवान शिव ने भी इन्हीं की कृपा से सिद्धियों को प्राप्त किया था। इन्हीं की कृपा से भगवान शिव का आधा शरीर देवी का हुआ और वह लोक में अर्द्धनारीश्वर के रूप में स्थापित हुए। नवरात्र पूजन के अंतिम दिन भक्त और साधक माता सिद्धिदात्री की शास्त्रीय विधि-विधान से पूजा करते हैं। माता सिद्धिदात्री चतुर्भुज और सिंहवाहिनी हैं। गति के
समय वे सिंह पर तथा अचला रूप में कमल पुष्प के आसन पर बैठती हैं। माता के दाहिनी ओर के नीचे वाले हाथ में चक्र, ऊपर वाले दाहिने हाथ में गदा रहती है। बाईं ओर के नीचे वाले हाथ में शंख तथा ऊपर वाले हाथ में कमल पुष्प रहता है। नवरात्र के नौवें दिन जातक अगर एकाग्रता और निष्ठा से इनकी विधिवत पूजा करे, तो उसे सभी सिद्धियां प्राप्त हो जाती हैं। सृष्टि में कुछ भी प्राप्त करने की सामर्थ्य उसमें आ जाता है। देवी ने अपना यह स्वरूप भक्तों पर अनुकंपा बरसाने के लिए धारण किया है। सिद्धिदात्री देवी उन सभी भक्तों को महाविद्याओं की अष्ट सिद्धियां प्रदान करती हैं, जो सच्चे मन और विधि-विधान से मां की आराधना करते हैं। इससे उन्हें यश, बल और धन की प्राप्ति होती है।