शरारती बालकों को सुधारा कैसे जाय?

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अभिभावकों की अक्सर यह शिकायत रहती है कि बालक बहुत शरारती है उसे सुधारा कैसे जाय ? 


       बालक की उदण्डता माता-पिता के लिए चिन्ता का विषय है परन्तु आधुनिक संसाधनों में इस संबध में जो तथ्य ज्ञात हुए उसके अनुसार ऐसे बालकों से चिन्तित होने की आवश्यकता नहीं। यदि वह शरारती है तो माना जा सकता है कि यह मेधावी भी बन सकता है और किसी न किसी क्षेत्र में असाधारण प्रतिमा सम्पन्न भी हो सकता है यह बात और है कि इसके लिए कुछ न हो पर शोध यही बताते हैं कि ऐसे बालक मेधा के धनी अवश्य हो सकते हैं।


       मनोवैज्ञानिकों ने शरारती बालकों में शोध के दौरान कई विशिष्टताएं देखी, इसमें स्मरण शक्ति ऐसे छात्र किसी बात को एक बार पढ़ या सुन लेते हैं तो दुबारा उन्हें याद करने की आवश्यकता नहीं होती। इसके अतिरिक्त उनकी बातें वजनदार और सारगर्भित होती हैं वे जो कुछ बोलते है वह तर्क एवं तथ्य पूर्ण होता है उनमें जिज्ञासा की प्रवृति होती है, कल्पना की शक्ति होती है भाषा मृदुल की अमला एवं नेतृत्व की योग्यता होती हैं, वे अनेक ऐसे प्रश्न कर सकते है जिनका सही जबाब दे पाना बडो़-बड़ो के लिए कठिन हो सकता है।


       हर बालक में अलग-अलग प्रतिभा के लिए जिम्मेदार मस्तकीय ज्ञान समान रूप से विकसित नहीं होते हैं किसी का कला वाला भाग किसी का संगीत तो किसी का गायन वाला हिस्सा विकसित होता है। इतने पर भी उन्हें होनहार न कहा जाना मेधा शब्द के अर्थ को सीमित करने जैसा होगा। वस्तुतः यह शब्द संस्कृत के मिद धात शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है विद्युत विजली तो सम्पूर्ण काया में विद्यमान है संतान की स्थिति में यह सुनिश्चित करना है। उसमें किस प्रकार की क्षमता योग्यता निहित है, अभिभावक का कर्तव्य है यदि सूक्ष्मता पूर्वक अध्ययन करते रहा जाय तो यह पता लगाना कोई कठिन कार्य नहीं बालक का ध्यान किस ओर है इतना विदित हो जाने के उपरांत उसी दिशा में उन्हें प्रतिदिन प्रोत्साहन करके प्रतिभाशाली बनाया जा सकता है पर आज के माँ-बाप पढ़ाई में बालक की असफलता को देखते ही उन्हें भूल मानने की गलती कर बैठतें है और इतने भर में उन्हें हर क्षेत्र में अयोग्य घोषित कर देते हैं जबकि बात ऐसी है नहीं।


       नटखटपन के बारे में वैज्ञानिकों ने शोध के बाद कहा है कि यह मेघावी होने का संभावित लक्षण भी हो सकता है अस्तु जो शरारती बालक हैं उनके सम्बन्ध में तुरंत कोई मान्य नहीं बना लेना चाहिए अनेकानेक महापुरूष बाल्यकाल में ही बहुत उदण्ड थे पर आध्यात्मकी ऊँचाइयों को वे छू सके । यह भी एक सत्य है हमें हर किसी के मस्तकीय, चेतनात्मक, मेधा के विकार का प्रयास करना चाहिए। 




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