छठी मैया व्रत पूजा कब और क्यों मनाया जाता है | Chhath Puja Kab Aur Kyo Manaya Jata Hai

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छठ पूजा बिहार, झारखंड और पूर्वी उत्तर प्रदेश का बहुत बड़ा त्योहार माना जाता है। इसमें छठी मैया और सूर्य देव की पूजा की जाती है। आइए जानते हैं छठी मईया कौन है और क्यों करते हैं पूजा? छठ पूजा वर्ष में दो बार मनाया जाता है। पहली बार चैत्र में और दूसरी बार कार्तिक माह में। 


एक ऐसी पूजा जिसमें कोई पंडित पुजारी नही होता, 
जिसमें देवता प्रत्यक्ष है, 
जिसमें डूबते सूर्य को भी पूजते है, 
जिसमें व्रत जाति समुदाय से परे है, 
जिसमें सिर्फ लोकगीत गाते हैं, 
जिसमें पकवान घर में बनते हैं, 
जिसमें घाट पर कोई ऊंच-नीच नहीं है, 
जिसमें प्रसाद अमीर-गरीब सब श्रद्धा से ग्रहण करते हैं,
ऐसे सामाजिक सौहार्द, सदभाव, शांति, समृद्धि और सादगी के महापर्व छठ की हार्दिक शुभकामनाएं।🙏🙏💐💐

सूर्य देव को तो सभी जानते है, लेकिन छठी मईया कौन है? 


शास्त्रों के अनुसार षष्ठी देवी जिसे छठ माता कहा जाता है, ऋषि कश्यप तथा अदिति की मानस पुत्री हैं. इन्हें
देवसेना के नाम से भी जाना जाता है। नवजात शिशुओं के जन्मकाल से लेकर अगले 6 दिनों तक मां देवसेना उनके पास रहकर उनकी रक्षा करती हैं। इस वजह से इन्हें षष्ठी देवी की संज्ञा मिली। जिसे लोक भाषा में छठ माता कहते हैं। मां देवसेना भगवान सूर्य की बहन तथा भगवान कार्तिकेय की पत्नी हैं। देवासुर संग्राम में देवताओं की मदद के लिए जब इन्होंने असुरों क संहार किया तो इन्हें देवसेना कहा गया। 

ये प्रकृति की मूल प्रवृति के छठवें अंश से उत्पन्न हुई हैं। यही कारण है कि उन्हें षष्ठी कहा जाता है, जो भगवान भास्कर के साथ मिल कर सम्पूर्ण प्रकृति को धारण किए हुए हैं। 

पुराणों में इस देवी को कात्यानी के नाम से भी जाना जाता है। नवारत्र के छठे दिन इन्हीं माता की पूजा की जाती है। ग्रामीण समाज में आज भी बच्चे के जन्म के छठे दिन छठी पूजा का प्रचलन है। स्कंद पुराण में छठी मैय्या के व्रत के बारे में बताया गया है कि जो भी भक्त इस व्रत को सच्चे मन से करता है, उसकी सभी मनोकामना पूरी होती हैं, यह सभी सुखों को प्रदान करता है। छठी मैय्या संतान को दीर्घायु प्रदान करती हैं और बच्चों की रक्षा करना इनका गुण भी है।


कब मनाया जाता है छठ पूजा? 

दीपावाली के छह दिन बाद मनाया जाता है छठ पर्व/छठ पूजा। छठ पूजा का त्योहार हर साल कार्तिक महीने के शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को मनाया जाता है। इस साल (2023) छठ पूजा 17 नवंबर से 20 नवंबर तक मनाई जाएगी। छठ पूजा में सूर्यदेव और षष्ठी मैया की पूजा की जाती है। इस दिन शिव जी की पूजा भी की जाती है। 


छठ पूजा, व्रत व महत्व

छठ पूजा में संतान के स्वास्थ्य, सफलता और दीर्घायु के लिए महिलाएं और पुरुष 36 घंटे का निर्जला व्रत रखते हैं. यह व्रत सबसे कठिन व्रतों में से एक माना जाता है। यह महाव्रत साधकों के लिए कठिन व सबसे महत्वपूर्ण भी माना जाता है। षष्ठी तिथि की सांयकाल में सूर्य देवता को गंगा-यमुना या फिर किसी पवित्र नदी या तालाब के किनारे अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य के दौरान नदी किनारे बांस की टोकरी में मौसमी फल, मिठाई और प्रसाद में ठेकुआ, गन्ना, केले, नारियल, खट्टे के तौर पर डाभ नींबू और चावल के लड्डू भी रखे जाते हैं। इसके बाद पीले रंग के कपड़े से सभी फलों को ढक दिया जाता है और दीपक हाथ में लेकर टोकरी को पकड़कर तीन बार डूबकी मारकर भगवान सूर्य को अर्घ्य दिया जाता है। इस प्रसाद को बहुत ध्यान से रखा जाता है। इसमें साफ-सफाई और पवित्रता का विशेष महत्व है।


चार महत्वपूर्ण दिन

  1. नहाय-खाय
  2. खरना या लोहंडा
  3. सांझा अर्ध्य
  4. सूर्योदय अर्ध्य


पौराणिक कथाएँ / छठी या षष्ठी माता

1- सद्भावना और उपासना के इस पर्व के सन्दर्भ में कई कथाएं प्रचलित हैं। इनमें प्रथम कथा भगवान राम पर आधारित है। भगवान राम ने अगस्त्य ऋषि के निर्देश पर रावण विजय के लिए आदित्य हृदय स्तोत्र का पाठपूर्वक सूर्योपासना किया था और अयोध्या आगमन के बाद माता सीता के साथ सर्वप्रथम छठ व्रत किया था।


2- पौराणिक कथा के अनुसार, राजा प्रियंवद बहुत दिनों तक कोई संतान नहीं हुआ. जिसके बाद महर्षि कश्यप ने यज्ञ कराकर प्रियंवद की पत्नी को यत्र आहुति के लिए बने प्रसाद को खाने के लिए कहा. जिसके बाद प्रियंवद की पत्नी मालिनी को पुत्र की प्राप्ति तो हुई, लेकिन वह मृत था. प्रियंवद अपने मृत पुत्र को लेकर श्मशान गए और वहां पुत्र वियोग से प्राण की आहुति देने लगे. कहते हैं कि उसी वक्त ब्रह्माजी की मानस पुत्री देवसेना प्रकट हुईं और कहा कि वे षष्ठी माता हैं और उनकी पूजा करने से पुत्र प्राप्ति होगी. षष्ठी माता के कहने पर राजा प्रियंवद ने वैसा ही किया. की जिसके बाद उन्हें तेजस्वी पुत्र की प्राप्ति हुई. तब से कार्तिक शुक्ल षष्ठी के दिन षष्ठी माता की पूजा शुरू हुई जो आज तक जीवंत है। 


3- महाभारत काल में कर्ण ने भी की थी सूर्यदेव की  पूजा :- पौराणिक मान्यता है कि महाभारत काल में सूर्य पुत्र कर्ण ने भी सूर्य देव की उपासना की थी। कर्ण भगवान सूर्य के परम भक्त थे। वे प्रतिदिन कमर तक पानी में खड़े होकर सूर्य देव की उपासना किया करते थे। मन्यता है कि सूर्य देव की कृपा से ही वे महान योद्धा बने। 


💐🙏जय छठी मईया 🙏💐




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