संगति का प्रभाव

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एक बार एक बहेलिया शिकार करने गया। थकान हुई तो एक वृक्ष के नीचे आकर सो गया। हवा तेज थी, इसलिए वृक्ष की छाया कभी कम तो कभी अधिक हो रही थी। इसी बीच वहाँ से एक सुंदर हंस उड़कर जा रहा था। हंस ने देखा कि वह व्यक्ति परेशान हो रहा है, धूप उसके मुंह पर आ रही है तो ठीक से सो नही पा रहा है। तभी हंस अपने पंख खोल कर पेड़ की डाली पर बैठ गया, ताकि उसकी छांव में वह शिकारी आराम से सो सके। 

शिकारी आराम से सो गया। तभी एक कौआ आकार उसी डाली पर हंस के बगल में बैठ गया। कौवे के बैठने पर हंस ने सोचा कि वह वहाँ से उड़ जाए, लेकिन वह नहीं चाहता था कि शिकारी को धूप लगे, क्योंकि कौवे की छाया इतनी बड़ी नहीं था कि धूप को रोक सके। कौवे ने इधर-उधर देखा और शिकारी के ऊपर विष्ठा कर उड़ गया। शिकारी उठ गया और गुस्से से यहाँ-वहाँ देखने लगा। उसकी नजर हंस पर पड़ी और उसनें तुरंत धनुष-बाण निकाला और हंस को मार दिया। 


यह कहानी हमें यह शिक्षा देती है कि हमारी संगति का प्रभाव हम पर अवश्य पड़ता है। दुर्जनों की संगति करने से हमारे शुभकर्म भी प्रभावहीन हो जाते हैं और दुर्जनों के दुष्कर्मों का प्रभाव हम पर पड़ जाता है।

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