भाई बहन के प्यार का प्रतीक रक्षाबंधन का त्यौहार | Bhai Bahan ke pyar ka prateek Rakshabandhan ka tyohar

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रक्षाबंधन या राखी का त्यौहार या उत्सव विश्व भर में मनाया जाने वाला महत्वपूर्ण त्यौहार है .....
जिसे भारतीय सनातन धर्म के लोग बहुत ही हर्ष और उल्लास के साथ मनाते हैं ... आज के समय में विश्व स्तर पर रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाने लगा है जिसे अनेक धर्म के लोग जैसे - इसाई , सिख और आमतोर पर मुस्लिम धर्म के लोग भी l

इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है -  रक्षासूत्र , रक्षाबंधन और राखी परन्तु प्रमुख रूप से रक्षाबंधन नाम अधिक प्रचलित है l

                       
रक्षाबंधन का त्यौहार 



मुख्य रूप से ये त्यौहार - हिंदू धर्म का है (अन्य धर्म भी मनाने लगे हैं)

उद्देश्य - बहन की रक्षा करना, निःस्वार्थ भाव से प्रेम और सहयोग

उत्सव - खुशियों का , आपसी निश्छल प्रेम का , उपहारों का , भोज का ( रिश्तों को एक माला में मोती पिरोने जैसा )

अनुष्ठान - व्रत , पूजा , रक्षासूत्र का धागा बांधना , मिष्ठान खिलाना आशीर्वाद लेना

आरंभ - पौराणिक काल से

तिथि - श्रावण मास की अंतिम पूर्णिमा



ये त्यौहार भाई बहन के निष्छल प्रेम का प्रतीक माना जाता है जिसमें इस रिश्ते में एक दूसरे के प्रति पूर्ण समर्पण होता है , प्रेम होता है , सम्मान होता है । इस त्योहार में बहन अपने भाई को कुमकुम हल्दी और अक्षत का टीका लगाती है । फिर रक्षा का सूत्र बांधती है। फिर भाई की आरती करती है नजर उतारने के लिए, बहन भाई के लिए प्रार्थना करती है- अपने ईष्ट से उसकी लंबी आयु के लिए , सुखी रहने के लिए, हर बुरी बलाओं से बचे रहने के लिए और फिर मिठाई खिलाती है । जो की बहन व्रत रखती है तो भाई भी बहन को मिठाई खिलाते है । इसके उपरान्त भाई बहन की रक्षा करने का वचन देता है । अगर बहन बड़ी है तो भाई आशीर्वाद लेता है और अगर भाई बड़ा है तो बहन , तो कहने का तात्पर्य ये है की ये रक्षाबंधन का त्योहार भाई और बहन के पवित्र रिश्ते का साक्षी होता है जिसमें निःस्वार्थ भाव , समर्पण , सम्मान और विश्वास का प्रतीक होता है ।

(रक्षासूत्र बांधकर बहन भाई के लिए लंबी आयु की कामना करती है , हर बुरी बलाओं से बचे रहने के लिए कामना करती है, और उसकी सुख समृद्धि के लिए भी कामना करती है। उसी जगह पर भाई भी बहन के हर सुख दुख में साथ रहने का और मुख्य रूप से उसकी रक्षा करने का वचन देता है ।)



सर्वप्रथम रक्षाबंधन का पर्व कब शुरू हुआ और किसके द्वारा शुरू हुआ इसकी कई पौराणिक और ऐतिहासिक कथाएं भी हैं जो निम्न हैं -


पौराणिक कथाएं -

1 - देवी लक्ष्मी द्वारा दानवीर राजा बली को राखी बांधना -


कहते हैं कि जब भगवान विष्णु राजा बली के कहने पर किसी कारण वश उनके साथ पताल लोक में रहने चले गए तब देवी लक्ष्मी चिंतित हो उठी पति को वापस लाने के लिए की कैसे लाया जाए । तब ऋषी नारद ने देवी लक्ष्मी से कहा कि आप राजा बली को रक्षा सूत्र बांधकर भाई बना लीजिए उसके बाद जब आपसे वो वरदान मांगने को कहेंगे तो आप भगवान विष्णू को मांग लीजिएगा । तत्छड़ देवी लक्ष्मी ने वेश बदलकर राजा बली के पास गईं और उन्हें राखी बांधकर वरदान में भगवान विष्णू को साथ ले आईं और राजा बली को वरदान में बहन को देना ही पड़ा भगवान विष्णू को। मान्यता है की सर्वप्रथम देवी लक्ष्मी द्वारा ही रक्षाबंधन की शुरुवात हुई थी ।


2 - द्रौपदी द्वारा श्री कृष्ण को राखी बांधना -

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है की इंद्रप्रस्थ में शिशुपाल का वध करने के लिए जब भगवान श्रीकृष्ण ने अपना सुदर्शन चक्र चला कर शिशुपाल का वध किया था तो उनकी उंगली में चोट आ गई थी , तो जब द्रौपदी ने उनकी उंगली के चोट को देखा तब उनसे रहा न गया उन्होंने तुरन्त ही अपनी साड़ी के पल्लू को फाड़ कर कृष्ण भगवान की उंगली पर बांध दिया । तब श्रीकृष्ण ने उन्हें उनकी रक्षा का वचन दिया - उन्होंने कहा कि जब भी तुम किसी विपत्ति में रहोगी मुझे एक बार आवाज देना मैं तुम्हारी रक्षा के लिए अवश्य आऊंगा तुम्हारी सदा रक्षा करूंगा ।


3 - देवगुरू वृहस्पति द्वारा देवराज इंद्र को रक्षासूत्र बांधना -

पौराणिक कथाओं के अनुसार कहा जाता है जब देवों और असुरों में युद्ध चल रहा था तो इंद्राणी द्वारा निर्मित रक्षासूत्र के धागे को देवगुरु बृहस्पति ने इंद्र के हाथों में बांधा था , उनकी रक्षा के लिए। देवराज इंद्र को जब गुरु वृहस्पति ने रक्षासूत्र बांधा तो एक मंत्र का उच्चारण करके बांधा था। जो इस प्रकार है -


ये श्लोक रक्षाबंधन का अभीष्ट मंत्र है -

"येन बद्धो बली राजा दानवेन्द्रो महाबलः।
तेन त्वां प्रतिबध्नामि रक्षे मा चल मा चल"।।



"इस श्लोक का हिंदी अर्थ है - जिस रक्षासूत्र से महान शक्तिशाली दानवेंद्र राजा बली को बांधा गया था , उसी सूत्र से मैं तुझे बांधता हूं। हे रक्षे (राखी) तुम अडिग रहना ( तुम अपने संकल्प से कभी भी विचलित न हो )"


"उपरोक्त मंत्र का उच्चारण करते हुए हमे राखी बांधनी चाहिए। "


रक्षाबंधन से जुड़ी ऐतिहासिक कहानियां -

पहली ऐतिहासिक कहानी -


रक्षाबंधन की शुरुवात ऐतिहासिक दृष्टि से मध्यकालीन युग से मानी गई है । जब राजपूत वंश के योद्धा अपनी जान की बाजी को लगाकर युद्ध करने जाते थे तो उनके घर और राज्य की बहन - बेटियां राखी बांधकर तिलक लगा करके आरती उतारती थीं। जिससे युद्ध में उनकी रक्षा हो और विजय हो। कहा जाता है की उस जमाने में जब मुस्लिम शासक हिंदू युवतियों को बलपूर्वक खींचकर उठाकर ले जाने लगे तो बाकी राजपूत स्त्रियां बलशाली राजाओं को राखी भेज कर अपने सम्मान की रक्षा करने लगीं। "उन राजाओं ने उनके सम्मान की रक्षा की"
इस परंपराओं ने बाद में जाकर रक्षाबंधन पर्व का रूप ले लिया।


दूसरी ऐतिहासिक कहानी -

एक मुख्य कहानी चित्तौड़ की महारानी कर्मावती की है जो रक्षाबंधन से ही संबंधित विशेष रूप से उल्लेखनीय है। कहते हैं की जब गुजरात के शासक बहादुरशाह ने चित्तौड़ पर आक्रमण कर दिया तो रानी कर्मावती ने बादशाह हुमायूं को भाई मानते हुए राखी के धागे को भेजकर उनसे रक्षा करने प्रार्थना की। बादशाह हुमायूं राखी और संदेश पाकर भाव विभोर हो उठे और अपनी उस मुंहबोली बहन के प्रति कर्तव्य में होकर बिना झिझक अपने कर्तव्य को निभाने अपनी भारी सेना के साथ चित्तौड़ चल दिए। वहां जाकर उन्हें पता चला की महारानी कर्मावती और हजार वीरांगनाएं अपने सम्मान की रक्षा करते हुए अपने शरीर को अग्नि में आहूति दे चुकी थीं। उसके बाद बादशाह हुमायूं ने महारानी कर्मावती की चिता की राख को अपने माथे पर लगाते हुए अपने बहन के प्रति कर्तव्यों का पालन करने की कसम खाई और फिर उन्होंने जो कुछ किया वो इतिहास के पन्नो पर अंकित हो गया। " राखी से जुड़ी एक अविस्मरणीय ऐतिहासिक कहानी जो हमेशा के लिए यादगार हो गया। "




निष्कर्ष - इससे हमें यह पता चलता है कि रक्षाबंधन भाई - बहन का पवित्र त्योहार तो है ही लेकिन ये रक्षा का बंधन हम किसी भी रिश्ते में किसी को भी बांधकर रक्षा का वचन ले या दे सकते हैं । और इस रिश्ते को निःस्वार्थ भाव से निभा सकते हैं ।

लेखिका - नेहा श्रीवास्तव

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