मूर्ख सियार और वह फल |Murkh Siyaar aur wah phal
बहुत समय पहले की बात है। जंगल में एक सियार भूख से परेशान धूम रहा था। वह एक वृक्ष के नीचे पहुंचा ही था कि उसे पके फल की खुशबू आई। वह फल को तोड़ने का प्रयास करने लगा। तमाम कोशिशों के बाद भी जब वह फल नहीं तोड़ पाया तो उसने एक योजना बनाई। सियार ने अपने सभी सियार साथियों को उस पेड़ के नीचे इकट्ठा किया। सभी सियारों ने अपनी-अपनी बुद्धि का प्रयोग किया। किसी ने उछलकर उस फल तक पहुंचने की कोशिश की, तो किसी ने पेड़ पर चढ़ने का प्रयत्न किया। सभी सियार सारे प्रयत्न करके थक गए, लेकिन कोई भी फल को तोड़ नहीं पाया। तभी पीछे बैठे एक बूढ़े सियार ने एक युक्ति सुझाई उसने कहा, "जो सबसे बलशाली सियार हो, वह नीचे खड़ा हो जाए और उसके ऊपर उससे कमजोर और फिर उसके ऊपर उससे कमजोर, इस प्रकार खड़े होकर उस फल तक पहुंचा जा सकता है।" बूढ़े सियार का यह सुझाव सबको पसंद आया। योजना के अनुसार सबसे बलवान सियार सबसे नीचे खड़ा हो गया, उसके ऊपर दूसरा सियार, फिर उसके ऊपर तीसरा सियार। इस प्रकार लगभग आठ-दस सियार खड़े हो गए। इसमें कुछ समय लग गया, तो सबसे नीचे खड़ा सियार मन ही मन शंका करने लगा कि मैं कहीं नीचे खड़ा सबका वजन उठाता न रह जाऊं और सबसे ऊपर वाला सियार सारे फल खा जाए। अपनी शंका को दूर करने के लिए उसने सिर घुमाकर ऊपर देखा। इससे उसका संतुलन बिगड़ गया और सभी सियार एक-दूसरे पर गिर पड़े। किसी की पूंछ मुड़ गई, किसी की पसलियां टूट गईं और किसी के पैर में चोट आई। फल खाने की योजना धरी की धरी रह गई।
निष्कर्ष :- इसलिए किसी भी योजना के क्रियान्वयन के समय धैर्य रखना चाहिए, तभी वह पूरी होती है और सुखद परिणाम देती है।
धन्यवाद !