रानी रासमणि की कहानी | Story of Rani Rasmani

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रानी रासमणि लोगो के दिलों पर करती थी राज 



       रानी रासमणि कोई रानी नही थी, लेकिन अपने त्याग, बलिदान और देश की आजादी के लिए दीवानगी के कारण वह जनता के दिल पर राज करती थीं। ईस्ट इंडिया कंपनी के सामने निडरता के साथ खड़े होने से लेकर दक्षिणेश्वर काली मंदिर की स्थापना तक राशमोनी ने कोलकाता (पूर्व कलकत्ता) के इतिहास पर अमिट छाप छोड़ी। रानी राशमोनी का जन्म 28 सितंबर, 1793 को बंगाल के हालीशहर में एक कैवर्त (मछुआरा समुदाय) परिवार में हुआ था। वह जब किशोरावस्था में थीं तो उनकी शादी एक जमींदार परिवार के राज दास के साथ कर दी गई। पति-पत्नी के बीच बेहतरीन तालमेल बना और दोनों मिलकर अपनी संपत्ति का इस्तेमाल लोगों के कल्याण के लिए करने लगे। सन 1830 में राज दास का निधन हो गया। उनकी मौत के बाद राशमोनी ने जीवन के सबसे कठिन समय का सामना किया। उन्होंने पितृसत्ता से लड़ते हुए विधवाओं के खिलाफ तत्कालीन सामाजिक मान्यताओं का विरोध किया। चार युवा बेटियों की जिम्मेदारी कंधों पर उठाकर पारिवारिक कारोबार की बागडोर संभाली। 1840 के दशक में मुनाफा बढ़ाने के लिए ईस्ट इंडिया कंपनी ने जब मछुआरों की नौकाओं पर कर लगाया, तब राशमोनी ने बेहद चतुराई से कंपनी को मात दी। ईस्ट इंडिया कंपनी को उनके साथ समझौता करके मछली पकड़ने पर लगाया गया टैक्स खत्म करना पड़ा। मछुआरों के अधिकारों की रक्षा के लिए उनके कार्यों की सराहना आज भी की जाती है। इन्हें 'लोकमाता रानी रासमणि' के नाम से भी जाना जाता है।  रानी रासमणि ने अपने जनहितैषी कार्यों के माध्यम से प्रसिद्धि अर्जित की थी। 

जन्म व स्थान - 28 सितंबर, 1793/ हालीशहर (बंगाल),
मृत्यु - 19 फरवरी, 1861( कोलकाता) 
धर्म - हिन्दू
राष्ट्रीयता - भारतीय



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